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जातिवाद अर्थ, परिभाषा और इतिहास (JAATIWAAD EK JAHAR )


जातिवाद अर्थ, परिभाषा और इतिहास :-
                                      भारत में घूमते हुए यदि किसी भारतीय से उसकी जाति, पूछ ली जाए तो उसके लिए यह बिल्कुल भी आश्चर्य का विषय नहीं होगा, क्यूंकि स्वतंत्रता के 71 वर्ष बाद भी इस धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में चाहे मात्र कुछ घंटों का संवाद बनाना हो या जिंदगी भर के लिए निभाने वाला कोई रिश्ता सिर्फ जाति का मुद्दा ही है जो दो लोगों को जोड़ता है इसलिए शायद जातिवाद पर बात करना आवश्यक हो गया है, इसकी परिभाषा भी कोई सीमित नहीं है, जातिवाद शब्द के भीतर जो स्वार्थ छुप कर बैठा है, वो ही इसे एक शब्द में ही अच्छे से समझा जा सकता है, वास्तव में जातिवाद जिन दो शब्दों से मिलकर बना है वो हीं इसकी दिशा को मोड़ देते हैं ‘’जाति’’ का अर्थ है वो समुदाय जो आपस में आर्थिक और सामाजिक संबंधों से जुड़ा हुआ हो और ‘’वाद’’ का मतलब कोई व्यवस्थित मत या सिद्धांत जिसकी अधिकता कब हो जाती है पता नहीं चलता, ऐसे में जाति+वाद से मिलकर बना यह जातिवाद शब्द किसी एक समुदाय विशेष को ही नहीं बल्कि पूरे समाज को गलत तरीके से प्रभावित कर सकता है.और अब राजनीति में इसका उपयोग बहुत किया जाता है इसी कारण शायद भारत जैसे पंथ-निरपेक्ष, धर्म-निरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में भी जातिवाद को इतना पोषण मिल रहा है I



‘’काका कालेकर’’ के शब्दों में जातिवाद शक्तिशाली पक्ष द्वारा की जाने वाली वह अंधाधुध अवहेलना है जो कि स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक तत्व जैसे समानता, भाईचारे को खत्म करती हैं जबकि ‘’के.ऐम.पणिक्कर’’ के शब्दों में जातिवाद किसी जाति या उपजाति कि वह ईमानदारी है जो कि राजनीति में अनुवादित हो चुकी हैं I

जातिवाद की उत्पत्ति और इतिहास
भारतीय समाज में जातिवाद के उत्पत्ति कब हुई, यह बता पाना मुश्किल है I क्यूंकि आदि काल में मानव छोटे-छोटे समूह बना कर जीवनयापन करते थे, फिर इसी क्रम में यह समूह कब एक जाति में बदले उस समय का पता लगाना संभव नहीं है लेकिन जातिवादिता कि रूढ़ता कैसे जन्मी होगी यह जरूर समझा जा सकता हैI देश पर जब बाहरी आक्रमण होने शुरू हुए, तो उसमें अस्तित्व को बचाने के प्रयास में जातिवादिता और जटिल होती चली गईI इस तरह से जाति को कुछ नियमों से बांधा जाने लगा जैसे रोटीबंदी, बेटिबंदी, ये ‘’बंदी’’  प्रत्यय का साथ नाम इसलिए बने क्योंकि इन दोनों ही शब्दों में ‘’रोटी’’मतलब रोजगार और ‘’बेटी’’ को मतलब बेटी के विवाह को एक सीमा का निर्धारण कर इसे बांध दिया गया I ‘’रोटीबंदी’’ का अर्थ है अपना खाना अपना रोजगार अपनी जाति के बाहर किसी से भी साझा नहीं करना, ‘’बेटीबंदी’’ में बेटियों का विवाह जाति से बाहर करना निषिद्ध कर दिया गया I भारत में इस कारण बहुत से धर्म और धर्म में भी भीतर तक जाति और उपजाति और इससे भी आगे तक हुआ, लेकिन इस और कहीं तत्कालीन परिस्थितियों के लिए आवश्यक नहीं है भारत में जातिगत वर्गीकरण थोड़ा मुश्किल था क्योंकि यहां जाति के अलावा भी बहुत से कारक थे जो जाति को निर्धारित कर सकते थे जातिगत व्यवस्था मूलत चार वर्णों पर आधारित थी, ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र वास्तव में यह कर्म आधारित प्रणाली थी इसमें जाति का निर्धारण व्यक्ति के कर्म से होता था, जिसमें जाति का किसी व्यक्ति के पूर्वजों से कोई संबंध नहीं होता था, जैसे यदि क्षत्रिय के बच्चे को वैश्य के काम में रुचि है,तो बच्चे को वैश्य का वर्ण मिल जाता था, लेकिन कालांतर में यह सब बदलता गया और जाति का निर्धारण अनुवांशिक रूप से होने लगा जैसे क्षत्रिय के बच्चे क्षत्रिय ही कहलाये जाएंगे, इसी तरह से अन्य वर्णों के भी बच्चे अपने पिता की जाती और उसके कर्मों का अनुसरण करेंगे I



सामाजिक स्तर पर जातिवाद
जातिवाद के कारण समाज का दो हिस्सों में बटना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसका प्रभावित तब सुनिश्चित होने लगी, जब इन दो वर्गों में से एक को शक्ति हासिल होती गई, वहीं दूसरे वर्ग का शोषण का प्रभाव बढ़ने लगा , इस कारण जहाँ एक जाति उन्नत और समृद्ध होती गई, वहीं दूसरी जाति का पतन होने लगा और विकास के सभी मार्ग बंद होने लगे I आर.एन. शर्मा के अनुसार जातिवाद किसी व्यक्ति की अपनी जाति के प्रति अंधश्रद्धा है जो कि दूसरी जातियों के हितों की परवाह नहीं करती और अपनी जाति के सामाजिक आर्थिक राजनीतिक और अन्य जरूरतों को पूरी करने का ही ध्यान रखते हैं I



राजनीति में जातिवाद
जातिवाद जब तक सामाजिक स्तर पर था, तब तक इससे जुड़ी समस्याएं निश्चित और सीमित थी, लेकिन राजनीति में जातिवाद का प्रभाव पड़ने पर देश बंटने लगा I जाती निर्धारित वोटों की गिनती ने समाज को और बांट दिया, इसका उपयोग द्वेष और अलगावाद को बढ़ावा देने के लिए किया जाने लगा और सभी असामाजिक गतिविधियां फैलाने लगीं, क्योंकि जाति का ठप्पा वोटो और नोटों के सहारे किसी भी अपराधी को बचकर निकलने में मदद करने लगा I इस तरह जैसे जैसे राजनीतिक समीकरण जाति आधारित बनते गए वैसे वैसे संविधान आधारित लोकतंत्र की न्यू हिलने लगी I




 जातिवाद के चिन्ह
जातिवाद का विचार जातियों और उच्च जातियों की ईमानदारी और समर्पण की महत्व को दिखाता है, यह तो अन्य जातियों के हितों पर ध्यान नहीं देता या परवाह नहीं करता किसी भी जातिवादी के लिए ‘’मेरी जाति का आदमी’’ और केवल मेरी जाती ही ‘’सही’’ या ‘’गलत’’ है का सिद्धांत ही सब कुछ होता है, जातिवादी लोग लोकतंत्र के खिलाफ होते हैं, जाति केवल एक पक्ष को न्याय दे सकता है, जो कि उसकी जाति के लिए लाभदायक हो फिर चाहे वह मानवता की कोई सीमा का उल्लंघन करता हो, जातिवाद किसी भी देश के निर्माण के लिए और प्रगति के लिए बहुत ही बड़ी बाधा है और यह संविधान के विपरीत भी है, जातिवाद में शोषण की संभावना बहुत बढ़ जाती है इस से कोई एक उच्च जाति, ऊंची तो कोई एक जाति नीची बन जाती है, इस तरह से कम शक्ति वाली जाति का शोषण होने लगता है और इस उच्च नीच के निर्धारण के लिए कोई क्षेत्र भी नहीं होता ,जैसे जाति आधारित वर्गीकरण के लिए पैसा विद्या और कर्म अब तक मुख्य कारण रहे हैं, जिसमें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य स्वत: सवर्ण में आ गए और बाकी सभी जातियां इनके शोषण का शिकार होने लगे I



जातिवाद के कारण
 अपनी जाति के सम्मान की रक्षा करना:-  कोई भी व्यक्ति अपनी जाति के लिए जन्म से ही गौरवान्वित होता है इसका कारण अपनी जाति के प्रति समर्पण भाव में वह इतना लिन हो जाते हैं, कि मानवता के सभी मर्यादा तक भूल जाते हैं, और यही वर्ग शोषक का वर्ग बन जाता है जबकि शोषित वर्ग अपने कर्म के साथ ही जीवन यापन करके हमेशा के लिए दबा रहना चाहता है I
अंतरजातीय विवाह:- किसी भी समुदाय में यह परंपरा की शादी अपने समूह से बाहर नहीं करनी है, जातिवाद को प्रबलता प्रदान करती है, इसके कारण सिर्फ सामाजिक स्तर पर ही सब कुछ नहीं होता, बल्कि किसी जाति का जीन पूल भी सिमट के रह जाता है जिनमें विभिताएं नहीं आ पातीं I
 शहरीकरण:- गांव में रोजगार की कमी के चलते, काफी जनसंख्या शहरों में बसने लगे, लेकिन वहां जातीय विभिन्तायें के चलते जीवनयापन और संवाद मुश्किल होने लगा ऐसे जातिवाद को और भी बल मिला, और वो लोग भिन्न भिन्न गांव के थे, एक ही जाति होने के कारण साथ साथ रहने लगे I
 सामाजिक दूरी:- वह जातियां जो खुद को दूसरे से बेहतर समझती थी, वह अन्य जातियों से दूरी रखने लगे, जिस कारण छुआ-छूत और सामाजिक असमानता बढ़ने लगी ,और जातिवाद ना केवल इन जातियों में बल्कि उस वर्ग में भी प्रबल होने लगा जो इस असमानता का शिकार हो रही थी I
 आज शिक्षा अवसरों की कमी:- जिन जातियों ने शक्ति हासिल कर ली वह शिक्षित होती चली गई,लेकिन जिन के पास संसाधनों की कमी थी, उस पर से उच्च जातियों का अत्याचार भी होता था, वह भी अपनी जाति और जातिवाद को महत्व समझने लगी I



जातिवाद के परिणाम
 जातिवाद असमानता और अन्याय आधारित है, जातिवाद को सिस्टम का हिस्सा कहना गलत होगा, वास्तव में ये वो राक्षस है जो समाज को निगल रहा है, इस कारण लोकतंत्र भी मजाक बनके रह गया है ,अभी के समय में भारत की हर जाति के समाज में द्वेष की संभावना प्रबल है, जिसमें एक जाति दूसरी जाति को अपमानित करना या सम्मान की दृष्टि से देखना और इसका कारण दोनों ही समाज में दूरियों को देखा जाना बहुत ही आम विषय है, और सामाजिक स्तर पर गौर करें तो जातिवादी विचारधारा के कारण ही ऑनर किलिंग केस बढ़ने लगे हैं इसमें जाति से बाहर विवाह करने पर युवक की हत्या कर दी जाती है, और यदि इससे बच जाए तो उस परिवार को समाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ता है इस तरह से कहा जा सकता है कि, जातिवाद व्यक्ति का अपनी जाति के प्रति एकतरफा समर्पण का वो भाव है ,जो कि उससे कोई भी बलिदान ले सकता है I



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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of Sujeet Kumar. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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